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जिंदगी स्वादानुसार

विम्मो अपनी चमकीली मुस्कुराहट के साथ जब भी मिलती है दिल के अंधेरे से कोने को रोशन कर जाती है।

बातूनी नहीं है ज्यादा ,पर कम शब्दों में सब कुछ बोल जाती है। काले सफेद खिचड़ी से बाल, चेहरे पर पड़ी उम्र की लकीरे , सलीके से पिन अप की हुई सूती साड़ी, कद साढे 4 फीट से ज्यादा नहीं है पर जिंदगी जीने का अंदाज़ उसके कद से बहुत ऊँचा।


सारा दिन कॉलोनी के बच्चे उसके पीछे मौसी मौसी करते-करते भागते रहते हैं । रोजाना रात को खाने से पहले

सबको इकट्ठा कर कहानी सुनाना उसकी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा है। आज विम्मो बहुत खुश थी उसने 50 साल की कमसिन उम्र में साइकिल चलाना जो सीख लिया था । बिल्कुल एक बच्चे जैसी चहक रही थी ।

मुझे उसकी खुशी देखकर अपने नर्सरी स्कूल के बच्चे याद आ गए। बच्चे कैसे खुश हो जाते हैं ना जब वह कोई

नया खिलौना चलाना सीखते हैं । विम्मो भी अपनी साइकिल को बिल्कुल उसी तरह निहार रही थी जैसे नन्हा सा

बच्चा एक नए पाए हुए खिलौने को निहारता है।


मैंने कई बार बातों बातों में विम्मो से उसके परिवार के बारे में पूछा था।

पर वह हर बार हँस कर टाल जाती थी। पर आज शायद वह बहुत खुश थी और जब आंके जाने का डर ना हो तो इंसान बेफिक्र हो अपनी आप बीती सुना ही जाता है । वह अपने आप ही कहने लगी आपको पता है मेरी शादी दिल्ली में हुई थी। मेरे पति का पालम में एक फ्लैट है और अपनी एक स्टेशनरी की दुकान है ।



उसकी बातें सुनकर मुझे दुख के साथ साथ आश्चर्य भी हुआ कि एक संभ्रांत परिवार की विम्मो के साथ ऐसा

क्या हुआ कि वह आज यहाँ घर घर झाड़ू और बर्तन का काम करने के लिए मजबूर हो गई ।

वह फिर बताने लगी शादी के बाद 5 साल तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चला । पर जब मेरे पति को पता चला कि मैं माँ नहीं बन सकती तो उसने मुझे एक रात बीच सड़क पर ले जाकर छोड़ दिया।

मैं फिर अपने विचारों की दलदल घुसती चली गई कितना बौना हो जाता है न हमारा समाज अपनी रूढ़ीवादी सोच के आगे एक ओर तो हम स्त्री के मातृ स्वरूप को पूजते हैं और दूसरी ओर अगर स्त्री में माँ बनने की क्षमता नहीं है तो वही स्त्री समाज और स्वयं के लिए अभिशाप बन जाती है। विम्मो की बातों ने मुझे अपने विचारों से बाहर निकाला वह कह रही थी कि मुझे तो समझ नहीं आया था कि मैं क्या करूं ? ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं थी । माँ पिताजी को तो मैं शादी के बाद ही खो चुकी थी। इसलिए अपनी एक पहचान वाले की मदद से यहाँ आ गई और यहाँ आकर घर घर झाड़ू पोछा बर्तन का काम शुरू किया कुछ दिन तक तो लगता था कि मुझसे ज्यादा दुखी और कोई नहीं हो सकता । पर दुख ज्यादा देर तक मनाओ न तो वह आपको जकड़ने लगता है,

इसीलिए दुख का साथ छोड़ मैंने इन बच्चों की खुशियों का दामन पकड़ लिया। इन बच्चों ने मेरी जिंदगी बदल दी । मैंने इन्हीं से पढ़ना लिखना सीखा और अभी उन्होंने ही मुझे यह साइकिल चलाना सिखाया है।

मैं मन ही मन सोच रही थी कि आज साइकिल सीख कर विम्मो को लग रहा है कि वह खुद के पैरों पर खड़ी हो गई है ।जबकि अपने पैरों पर तो वह तब ही से दौड़ रही थी जब उसके पति ने उसे 20 साल पहले छोड़ दिया था।


विम्मो की आवाज ने फिर मुझे ख्यालों की दुनिया से बाहर निकाला उसने शरारती सी मुस्कान के साथ फिर कहा यह बच्चे मेरी फीकी सी जिंदगी में चटपटी चटनी के जैसे आए और मेरी फीकी सी दुनिया को फिर से चटाकेदार बना दिया। अपने बच्चे नहीं है तो क्या हुआ अब पूरी कॉलोनी के बच्चे मुझे मौसी कहते है। थोड़ी चटपटी, थोड़ी मीठी, कहीं नींबू सी खटास तो कहीं इमली की मिठास ।अब मेरी जिंदगी की भेलपुरी में स्वाद की कोई कमी नहीं है।


यह बोलकर वो खिलखिला कर हँसने लगी। विम्मो की जिंदगी का यह भेलपुरी वाला तर्क मुझे बहुत पसंद आया । उसकी जिंदगी में जिस चीज की कमी थी उसने उसी को दूसरे माध्यम से खोज कर अपने जीने का जरिया बना लिया था। दूसरे के स्वादानुसार तो खाना भी नहीं पसंद आता फिर जिंदगी तो अपनी हमजोली है । तो जिंदगी स्वाद अनुसार जीने में कोई बुराई नहीं है।

खासकर हम महिलाओं के लिए हम दूसरों की जिंदगी को खूबसूरत और सुंदर बनाने में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि  अपने जीवन की संभावनाओं को परे रख देते हैं| 


जीवन असीमित संभावनाओं से भरा पड़ा है और जाने अनजाने हम अपने आप को कुछ समस्याओं में सीमित कर लेते हैं । अपने आप को सीमित करने वालों में महिलाओं की तादाद ज़्यादा है या फिर यह कहें कि उनके लिए सीमाएं पहले से ही निर्धारित कर दी गई थी और समय के साथ-साथ उन्होंने उन सीमाओं को ही अपनी जिंदगी मान लिया । विम्मो ने मुझे यह भी सिखाया कि अपनी बात बेझिझक रखना कितना जरूरी है क्योंकि कई बार यह मान लिया जाता है कि यह तो ऐसा ही होता आ रहा है ....... क्योंकि किसी ने जताया ही नहीं कि यह गलत है। ज़रूरी नहीं सशक्त महिलाएं केवल बड़े-बड़े कार्यक्षेत्र में ही काम कर रही है हमारे आसपास की ज़िंदगी में ऐसी कई सशक्त महिलाएं हैं जिन्होंने अपना रास्ता खुद बनाया |


इसलिए खुलकर मुस्कुराइए ,बेझिझक अपनी बात कहिए अपनी कहानी को अपने शब्दों में बयां करना और अपने एहसासों के सब के साथ दुनिया के सामने रखना बहुत जरूरी हैक्योंकि खामोशी समझने वाले किरदार केवल फिल्मों में होते हैं असली जिंदगी में भावनाओं को बोलकर जताना पड़ता है । 

 विम्मो जैसी शक्तिशाली प्रेरणादायक व्यक्तित्व से परिपूर्ण स्त्रियों  का कुनबा यूँ ही बढ़ता रहे बस यही प्रार्थना और उम्मीद है।

 
 
 
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